Kabir Das Ke Dohe With Meaning in Hindi कबीर दास के दोहे | AchhiK...
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कबीर दास जी के दोहे
Posted on March 3, 2013 by Gopal Mishra
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िजन खोजा तन पाइया, गहरे पानी पैठ, म बपरु ा बड ू न डरा, रहा कनारे बैठ।
कबीर दास जी के दोहे बुरा जो दे खन म चला, बुरा न म लया कोय, जो !दल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। अथ& : जब म इस संसार म( बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मला. जब मने अपने मन म( झाँक कर दे खा तो पाया क मुझसे बुरा कोई नह+ं है .
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— पोथी प!ढ़ प!ढ़ जग मआ ु , पं-डत भया न कोय, ढाई आखर 0ेम का, पढ़े सो पं-डत होय। अथ& : बड़ी बड़ी प2 ु तक( पढ़ कर संसार म( कतने ह+ लोग म4ृ यु के 5वार पहुँच गए, पर सभी 8व5वान न हो सके. कबीर मानते ह क य!द कोई 0ेम या 9यार के केवल ढाई अ:र ह+ अ;छ= तरह पढ़ ले, अथा&त 9यार का वा2त8वक >प पहचान ले तो वह+ स;चा ?ानी होगा. — साधु ऐसा चा!हए, जैसा सूप सभ ु ाय, सार-सार को ग!ह रहै , थोथा दे ई उड़ाय। अथ& : इस संसार म( ऐसे सCजनD कE ज>रत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है . जो साथ&क को बचा ल( गे और नरथ&क को उड़ा द( ग.े — तनका कबहुँ ना निHदये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँIखन पड़े, तो पीर घनेर+ होय। अथ& : कबीर कहते ह क एक छोटे से तनके कE भी कभी नंदा न करो जो तL ु हारे पांवD के नीचे दब जाता है . य!द कभी वह तनका उड़कर आँख म( आ Mगरे तो कतनी गहर+ पीड़ा होती है ! — धीरे -धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माल+ सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। अथ& : मन म( धीरज रखने से सब कुछ होता है . अगर कोई माल+ कसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ह+ लगेगा ! —
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माला फेरत जग ु भया, फरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे , मन का मनका फेर। अथ& : कोई RयिSत लLबे समय तक हाथ म( लेकर मोती कE माला तो घम ु ाता है , पर उसके मन का भाव नह+ं बदलता, उसके मन कE हलचल शांत नह+ं होती. कबीर कE ऐसे RयिSत को सलाह है क हाथ कE इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतयD को बदलो या फेरो. — जात न पछ ू ो साधु कE, पूछ ल+िजये ?ान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो Lयान। अथ& : सCजन कE जात न पूछ कर उसके ?ान को समझना चा!हए. तलवार का मU ू य होता है न क उसकE मयान का – उसे ढकने वाले खोल का. — दोस पराए दे Iख कVर, चला हसHत हसHत, अपने याद न आवई, िजनका आ!द न अंत। अथ& : यह मनWु य का 2वभाव है क जब वह दस ू रD के दोष दे ख कर हं सता है , तब उसे अपने दोष याद नह+ं आते िजनका न आ!द है न अंत. — िजन खोजा तन पाइया, गहरे पानी पैठ, म बपुरा बड ू न डरा, रहा कनारे बैठ। अथ& : जो 0य4न करते ह, वे कुछ न कुछ वैसे ह+ पा ह+ लेते ह जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी म( जाता है और कुछ ले कर आता है . लेकन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते ह जो डूबने के भय से कनारे पर ह+ बैठे रह जाते ह और कुछ नह+ं पाते. — बोल+ एक अनमोल है , जो कोई बोलै जान, !हये तराजू तौ ल के, तब मुख बाहर आन। अथ& : य!द कोई सह+ तर+के से बोलना जानता है तो उसे पता है क वाणी एक अमU ू य र4न है । इस लए वह Zदय के तराजू म( तोलकर ह+ उसे मंह ु से बाहर आने दे ता है . — अत का भला न बोलना, अत कE भल+ न चूप, अत का भला न बरसना, अत कE भल+ न धूप।
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अथ& : न तो अMधक बोलना अ;छा है , न ह+ ज>रत से Cयादा चप ु रहना ह+ ठ=क है . जैसे बहुत अMधक वषा& भी अ;छ= नह+ं और बहुत अMधक धूप भी अ;छ= नह+ं है . — नंदक नयरे राIखए, ऑ ंगन कुट+ छवाय, \बन पानी, साबन ु \बना, नम&ल करे सभ ु ाय। अथ& : जो हमार+ नंदा करता है , उसे अपने अMधकाMधक पास ह+ रखना चा!हए। वह तो \बना साबन ु और पानी के हमार+ क मयां बता कर हमारे 2वभाव को साफ़ करता है . — दल & मानुष जHम है , दे ह न बारLबार, ु भ त]वर CयD प4ता झड़े, बहुVर न लागे डार। अथ& : इस संसार म( मनWु य का जHम मुि^कल से मलता है . यह मानव शर+र उसी तरह बार-बार नह+ं मलता जैसे व: ृ से प4ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नह+ं लगता. — कबीरा खड़ा बाज़ार म( , मांगे सबकE खैर, ना काहू से दो2ती,न काहू से बैर. अथ& : इस संसार म( आकर कबीर अपने जीवन म( बस यह+ चाहते ह क सबका भला हो और संसार म( य!द कसी से दो2ती नह+ं तो द^ु मनी भी न हो ! — !हHद ू कह( मो!ह राम 8पयारा, तुक& कह( रहमाना, आपस म( दोउ लड़ी-लड़ी मए ु , मरम न कोउ जाना। अथ& : कबीर कहते ह क !हHद ू राम के भSत ह और तक ु & (मुि2लम) को रहमान 9यारा है . इसी बात पर दोनD लड़-लड़ कर मौत के मुंह म( जा पहुंच,े तब भी दोनD म( से कोई सच को न जान पाया। —
New Kabir Das Dohas Added कहत सन ु त सब !दन गए, उरIझ न सुर`या मन.
कह+
कबीर चे4या नह+ं, अजहूँ सो पहला !दन. अथ& : कहते सन ु ते सब !दन नकल गए, पर यह मन उलझ कर न सल ु झ पाया. कबीर कहते ह क अब भी यह मन होश म( नह+ं
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आता. आज भी इसकE अव2था पहले !दन के समान ह+ है . —
कबीर लहVर समंद कE, मोती \बखरे आई.
बगुला भेद न जानई, हं सा चन ु ी-चन ु ी खाई.
अथ& :कबीर कहते ह क समa ु कE लहर म( मोती आकर \बखर गए. बगल ु ा उनका भेद नह+ं जानता, परHतु हं स उHह( चन ु -चन ु कर खा रहा है . इसका अथ& यह है क कसी भी व2तु का मह4व जानकार ह+ जानता है । — जब गुण को गाहक मले, तब गुण लाख \बकाई.
जब गुण
को गाहक नह+ं, तब कौड़ी बदले जाई. अथ& : कबीर कहते ह क जब गुण को परखने वाला गाहक मल जाता है तो गुण कE कEमत होती है . पर जब ऐसा गाहक नह+ं मलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है . —
कबीर कहा गर\बयो, काल गहे कर केस.
ना जाने कहाँ माVरसी, कै घर कै परदे स.
अथ& : कबीर कहते ह क हे मानव ! तू Sया गव& करता है ? काल अपने हाथD म( तेरे केश पकड़े हुए है . मालम ू नह+ं, वह घर या परदे श म( , कहाँ पर तझ ु े मार डाले. — पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस कE जात.
एक !दना छप जाएगा,CयD तारा परभात.
अथ& : कबीर का कथन है क जैसे पानी के बुलबुले, इसी 0कार मनWु य का शर+र :णभंगुर है ।जैसे 0भात होते ह+ तारे छप जाते ह, वैसे ह+ ये दे ह भी एक !दन नWट हो जाएगी. — हाड़ जलै Cयंू लाकड़ी, केस जलै Cयंू घास.
सब तन जलता दे Iख कVर, भया कबीर उदास.
अथ& : यह न^वर मानव दे ह अंत समय म( लकड़ी कE तरह जलती है और केश घास कE तरह जल उठते ह. सLपण ू & शर+र को इस तरह जलता दे ख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है . — —
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जो उbया सो अHतबै, फूUया सो कुमलाह+ं।
जो Mचनया सो ढह+ पड़े, जो आया सो जाह+ं।
अथ& : इस संसार का नयम यह+ है क जो उदय हुआ है ,वह अ2त होगा। जो 8वक सत हुआ है वह मुरझा जाएगा. जो Mचना गया है वह Mगर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा. — झठ ू े सख ु को सख ु कहे , मानत है मन मोद.
खलक
चबैना काल का, कुछ मुंह म( कुछ गोद. अथ& : कबीर कहते ह क अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन म( 0सHन होता है ? दे ख यह सारा संसार म4ृ यु के लए उस भोजन के समान है , जो कुछ तो उसके मुंह म( है और कुछ गोद म( खाने के लए रखा है . — ऐसा कोई ना मले, हमको दे उपदे स.
भौ सागर म( डूबता, कर ग!ह काढै केस.
अथ& : कबीर संसार+ जनD के लए दIु खत होते हुए कहते ह क इHह( कोई ऐसा पथ0दश&क न मला जो उपदे श दे ता और संसार सागर म( डूबते हुए इन 0ाIणयD को अपने हाथD से केश पकड़ कर नकाल लेता. — — संत ना छाडै संतई, जो को!टक मले असंत
चHदन भव ु ंगा बै!ठया, तऊ सीतलता न तजंत।
अथ& : सCजन को चाहे करोड़D दWु ट प] ु ष मल( फर भी वह अपने भले 2वभाव को नह+ं छोड़ता. चHदन के पेड़ से सांप लपटे रहते ह, पर वह अपनी शीतलता नह+ं छोड़ता. — कबीर तन पंछ= भया, जहां मन तहां उडी जाइ.
जो जैसी
संगती कर, सो तैसा ह+ फल पाइ. अथ& :कबीर कहते ह क संसार+ RयिSत का शर+र प:ी बन गया है और जहां उसका मन होता है , शर+र उड़कर वह+ं पहुँच जाता है । सच है क जो जैसा साथ करता है , वह वैसा ह+ फल पाता है . — तन को जोगी सब कर( , मन को \बरला कोई.
सब स8d सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ.
अथ& : शर+र म( भगवे व2e धारण करना सरल है , पर मन को योगी बनाना \बरले ह+ RयिSतयD का काम है य़!द मन योगी हो
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जाए तो सार+ स8dयाँ सहज ह+ 0ा9त हो जाती ह. — कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय.
सीस चढ़ाए पोटल+, ले जात न दे gयो कोय.
अथ& : कबीर कहते ह क उस धन को इकhा करो जो भ8वWय म( काम आए. सर पर धन कE गठर+ बाँध कर ले जाते तो कसी को नह+ं दे खा. — माया मुई न मन मआ ु , मर+ मर+ गया सर+र.
आसा
\eसना न मुई, यD कह+ गए कबीर . अथ& : कबीर कहते ह क संसार म( रहते हुए न माया मरती है न मन. शर+र न जाने कतनी बार मर चुका पर मनWु य कE आशा और तWृ णा कभी नह+ं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके ह. — मन ह+ं मनोरथ छांड़ी दे , तेरा कया न होई.
पानी म( घव नकसे, तो >खा खाए न कोई.
अथ& : मनWु य माe को समझाते हुए कबीर कहते ह क मन कE इ;छाएं छोड़ दो , उHह( तम ु अपने बूते पर पूण& नह+ं कर सकते। य!द पानी से घी नकल आए, तो >खी रोट+ कोई न खाएगा. ——-कबीर दास जी के दोहे Part 2—————-रह+म दास जी के दोहे —————–संत कबीर दास जीवनी——— ——–गो2वामी तल ु सीदास जी के दोहे ——— I am grateful to Vijaya Sati Ji for sharing this great collection of “Kabir Das Ji Ke Dohe” with AKC. नवेदन: कृपया अपने comments के मiयम से बताएं क कबीर दास जी के दोहD का यह संकलन आपको कैसा लगा . Note: 8वजया सती जी 5वारा लखे गए अHय लेख पढने के लए नीचे टै bस म( !दए उनके नाम पर िSलक कर( . य द आपके पास English या Hindi म कोई article, inspirational story या जानकार है जो आप हमारे साथ share करना चाहते ह तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail कर . हमार Id है :
[email protected].पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH कर गे. Thanks!
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118 thoughts on “कबीर दास जी के दोहे ”
P.K.Chaturvedi December 18, 2013 at 10:40 pm
Sant Kabir had never ed a school but their are lot of scholars who have done the Ph.D over them.
vijaya December 19, 2013 at 2:41 pm
इसी लए कबीर ने कहा है – तू कहता कागद कE लेखी, म कहता आँIखन कE दे खी ! और यह भी
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पोथी पढ़+-पढ़+ जग मआ ु , पं-डत भाया न कोय !
sourab December 12, 2013 at 4:33 pm
dil badalne vale dohe
Tanisha Modi December 11, 2013 at 5:25 pm
Its nice and lovely dohe. I feel happy to read this dohe.
abbas ali December 24, 2013 at 4:30 pm
perfect doha require for project
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